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कस्य॑ नू॒नं क॑त॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑। को नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kasya nūnaṁ katamasyāmṛtānām manāmahe cāru devasya nāma | ko no mahyā aditaye punar dāt pitaraṁ ca dṛśeyam mātaraṁ ca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कस्य॑। नू॒नम्। क॒त॒मस्य॑। अ॒मृता॑नाम्। मना॑महे। चारु॑। दे॒वस्य॑। नाम॑। कः। नः॑। म॒ह्यै। अदि॑तये। पुनः॑। दा॒त्। पि॒तर॑म्। च॒। दृ॒शेय॑म्। मा॒तर॑म्। च॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:24» मन्त्र:1 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौबीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र में प्रजापति का प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (कस्य) कैसे गुण कर्म स्वभाव युक्त (कतमस्य) किस बहुतों (अमृतानाम्) उत्पत्ति विनाशरहित अनादि मोक्षप्राप्त जीवों और जो जगत् के कारण नित्य के मध्य में व्यापक अमृतस्वरूप अनादि तथा एक पदार्थ (देवस्य) प्रकाशमान सर्वोत्तम सुखों को देनेवाले देव का निश्चय के साथ (चारु) सुन्दर (नाम) प्रसिद्ध नाम को (मनामहे) जानें कि जो (नूनम्) निश्चय करके (कः) कौन सुखस्वरूप देव (नः) मोक्ष को प्राप्त हुए भी हम लोगों को (मह्यै) बड़ी कारणरूप नाशरहित (अदितये) पृथिवी के बीच में (पुनः) पुनर्जन्म (दात) देता है। जिससे कि हम लोग (पितरम्) पिता (च) और (मातरम्) माता (च) और स्त्री पुत्र बन्धु आदि को (दृशेयम्) देखने की इच्छा करें॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में प्रश्न का विषय है कौन ऐसा पदार्थ है जो सनातन अर्थात् अविनाशी पदार्थों में भी सनातन अविनाशी है कि जिसका अत्यन्त उत्कर्षयुक्त नाम का स्मरण करें वा जानें? और कौन देव हम लोगों के लिये किस-किस हेतु से एक जन्म से दूसरे जन्म का सम्पादन करता? और अमृत वा आनन्द के करानेवाली मुक्ति को प्राप्त होकर भी फिर हम लोगों को माता-पिता से दूसरे जन्म में शरीर को धारण कराता है॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

तत्रादिमेन प्रजापतिरुपदिश्यते।

अन्वय:

वयं कस्य कतमस्य बहूनाममृतानामनादीनां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां जगत्कारणानां नित्यानां मध्ये व्यापकस्यामृतस्यानादेरेकस्य पदार्थस्य देवस्य चारु नाम नूनं मनामहे कश्च देवो नः प्राप्तमोक्षानप्यस्मान् मह्या अदितये पुनर्दातु ददाति येनाहं पितरं मातरं च दृशेयम्॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कस्य) कीदृशगुणस्य (नूनम्) निश्चयार्थे (कतमस्य) बहूनां मध्ये व्यापकस्यामृतस्याऽनादेरेकस्य (अमृतानाम्) उत्पत्तिविनाशरहितानां प्राप्तमोक्षाणां जीवानां (मनामहे) विजानीयाम्। अत्र प्रश्नार्थे लेट् व्यत्ययेन श्यनः स्थाने शप् च। (चारु) सुन्दरम् (देवस्य) प्रकाशमानस्य दातुः (नाम) प्रसिद्धार्थे (कः) सुखस्वरूपो देवः (नः) अस्मान् (मह्ये) महत्याम् (अदितये) कारणरूपेण नाशरहितायां पृथिव्याम्। अदितिरिति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) अत्रोभयत्र सप्तम्यर्थे चतुर्थी। (पुनः) पश्चात् (दात्) ददाति। अत्र लडर्थे लङडभावश्च। (पितरम्) जनकम् (च) समुच्चये (दृशेयम्) दृश्यासम् इच्छां कुर्याम्। अत्र दृशेरग्वक्तव्यः। (अष्टा०३.१.८६) अनेन वार्त्तिकेनाशीर्लिङि दृशेरग्विकरणेन रूपम्। (मातरम्) गर्भस्य धात्रीम् (च) पुनरर्थे॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र प्रश्नः कोऽस्तीदृशः सनातनानां पदार्थानां मध्ये सनातनस्याविनाशिनोऽर्थोऽस्ति यस्यात्युत्कृष्टं नाम्नः स्मरेम जानीयाम? कश्चास्मिन् संसारेऽस्मभ्यं केन हेतुना मोक्षसुखभोगानन्तरं जन्मान्तरं सम्पादयति? कथं च वयमानन्दप्रदां मुक्तिं प्राप्य पुनर्मातापित्रोः सकाशात् पुनर्जन्मनि शरीरं धारयेमेति॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

तेविसाव्या सूक्तात सांगितलेले वायू इत्यादी अर्थानुकूल प्रजापती इत्यादी अर्थ सांगण्याने या चोविसाव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

भावार्थभाषाः - या मंत्रातील प्रश्न असा की कोणता असा पदार्थ जो सनातन अर्थात अविनाशी पदार्थांमध्येही सनातन अविनाशी आहे? ज्याच्या उत्कृष्ट नावाचे स्मरण करावे व जाणावे. कोणता देव आमच्यासाठी कोणकोणत्या हेतूने एका जन्मातून दुसऱ्या जन्माला घालतो व अमृत, आनंद देणारी मुक्ती प्राप्त होऊन पुन्हा आम्हाला माता-पिता यांच्याद्वारे दुसऱ्या जन्मात शरीर धारण करवितो? ॥ १ ॥